Friday 21 June 2013

मर्द ही वो नाम है उस शख्स का,

 मर्द ही वो नाम है औरत के हर दर्द का, मर्द ही वो नाम है औरत के हर गम का, छीन लेता है जो हर ख़ुशी औरत के लबॊन से मर्द ही वो नाम उस शख्स का,जन्म लेते ही इस दुनिया में कभी बेटी बन कर तो कभी बहु बनकर, कभी प्रेमिका बन कर तो कभी पत्नी बनकर  अनेक रिश्तों में बंध  कर करने  पड़ते हैं बलिदान हर मोड़ पर पे जिस बेगैरत हस्ती के लिए  औरत को मर्द ही वो नाम है उस शख्स का,
कभी रीति-रिवाजों के नाम पर तो कभी   संसकारों के नाम पर, खून के रिश्तों के लिए तो कभी हमसफ़र के नाम पर जाने कितनी बार होती है कुर्बान ये औरत जिसकी ज़िन्दगी आबाद करने के लिए,  नहीं करती कोई उफ़ तक और सह लेती है  हर दर्द अपने दिल पर जिसकी ख़ुशी के लिए मर्द ही नाम है उस बेरहम शख्स का,ले कर फायदा औरत के ज़ज्बातों का खेल कर औरत के दिल से तोड़ कर उसे खिलौना समझ कर छोड़ उसे अकेले तनहा बीच मझधार में बेसहारे इस  दुनिया में दूर जाने वाले खुदगर्ज़ का मर्द ही नाम है उस शख्स का....

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